गुजरात में स्थित कच्छ (Kutch) नाही सिर्फ़ गुजरात का बल्के भारत का सबसे बड़ा जिला है। कच्छ 45674 स्क्वेयर किलोमीटर में फैला हुआ जो भारत कुछ राज्य जैसे कि हरियाणा, केरल और विश्व के देश एस्टोनिया से भी बड़ा है। इतना बड़ा जिला अपने अदभुत लैंडस्कैप्स, सांस्कृतिक विरासत और जानने लायक इतिहास से भरपूर है।
“कच्छ नहीं देखा तो क्या देखा” अमिताभ बच्चन की यह लाइने आपने सुनी तो होगी ही। तो ऐसे प्यारे और खूबसूरत कच्छ घूमना तो बनता ही है। इसीलिए हमनें कच्छ में 4 दिन घूमने का प्लान बनाया। तो आइए हमारे कच्छ टूर की कुछ इस लेख के जरिए आपको बताता हूं।

3 रात 4 दिन के लिए कच्छ का सफर (3N 4D Kutch itinerary)
कच्छ का टूर करने के लिए आप गुजरात या भारत कही से भी आ रहे हो तो सबसे पहले आपको कच्छ के कैपिटल भुज पहुंचना है जहां से आप घूमने की सारी प्लानिंग कर सकते हो। हम भी सबसे पहले भुज पहुंचे। लेकिन भुज हम शाम को पहुंचे थे इसीलिए उस दिन हमें घूमने लायक कोई भी स्थल लेने का समय नहीं बचा था।
कच्छ टूर दिन 1 (Kutch day 1)
कच्छ टूर के पहले दिन हमनें भुज सिटी को कवर किया। सबसे पहले हम प्राग महल और आईना महल देखने पहुंच गए। दोनों देखने लायक स्थल एक ही कंपाउंड में है। प्राग महल बहुल ही खूबसूरत है। पुराने जमाने की चीजें अच्छी तरह से संभाल कर रखी गई हैं। शेर और बाघ की बॉडी को भी संभालकर रखा गया है। प्राग महल में फोटो खींच सकते हो लेकिन आईना महल में फोटो खींचना मना है। आईना महल पुराना हो चुका हैं और 2001 के भूकंप में बहुत डैमेज भी हुआ था। यहां पर पुराने जमाने के आईने और अन्य चीजें रखी गई हैं।

प्राग महल देखकर हमनें लंच लेकर आराम किया और करीबन 4 बजे स्मृति वन अर्थक्वैक म्यूजियम देखने चले गए। कच्छ में 2001 में जो भयानक भूकंप आया था उसके आधार पर यह म्यूजियम बनाया गया है। इसमें टोटल 7 गैलरी है और 6 नंबर की गैलरी में एशिया का सबसे बड़ा अर्थक्वैक सिम्युलेटर बनाया गया है जिसे देखने और भूकंप का अनुभव करने के लिए आपको इस म्यूजियम की विजिट जरूर करनी चाहिए। इसकी एंट्री फि ₹300 प्रति व्यक्ति है और 5 से 12 साल के बच्चों के लिए ₹100 है।

स्मृति वन अर्थक्वैक म्यूजियम देखकर हम वंदे मातरम मेमोरियल देखने चले गए जो भुजोड़ी गांव में बनाया गया है। लेकिन यहां पहुंचते ही अंधेरा हो गया था इसीलिए हम यहां कुछ एक्सप्लोर नहीं कर सके। लेकिन आप समय का अच्छे से मैनेजमेंट करके यहां शाम होने से पहले पहुंच जाना क्योंकि यह बहुत ही अच्छा प्लेस है और साथ में अंधेरा होने के बाद यहां ऑडियो विजुअल लाइट शॉ भी होता है। भुजोड़ी गांव में कच्छ के ट्रेडिशनल कपड़े और समान मिलता है जिसकी शॉपिंग भी कर सकते हो।
इसके अलावा भुज में छतरड़ी, हीरालक्ष्मी क्राफ्ट पार्क, खारी नदी जॉर्ज, आदियोगी स्टेच्यू जैसे कई देखने लायक स्थल हैं जिसे हम समय की कमी की वजह से नहीं देख पाए।

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कच्छ टूर दिन 2 (Kutch day 2)
कच्छ टूर के दूसरे दिन हम सुबह जल्दी उठकर कच्छ का सफेद रन देखने के लिए धोरडो गांव चले गए। भुज से धोरडो करीबन 80 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में हर साल नवंबर से मार्च तक रणोत्सव का आयोजन होता है। यह रणोत्सव बहुत मस्त होता है जिसमें टूरिस्टों के लिए एक पूरा टेंट सिटी तैयार किया जाता है। इस रणोत्सव के जरिए आप कच्छ घूमने का 1 दिन से लेकर 5 दिन का टूर पैकेज ले सकते हो। हम तो अपनी प्लानिंग से आए थे इसीलिए इस टेंट सिटी में नहीं रुके थे।

धोरड़ो गांव पहुंचते ही हम सीधे कच्छ का सफेद रण देखने चले गए। सफेद रण में एंटर होने के लिए आपको सबसे पहले एंट्री टिकट बनवाना पड़ता है जो सफेद रण से 2 किलोमीटर पहले बनी ऑफिस से बनवाया जाता है। यह एंट्री टिकट आप ऑनलाइन भी बनवा सकते हो या फिर यहां से ऑफलाइन भी बनवा सकते हो। इसकी टिकट में वयस्कों के लिए 100 रुपए और बालकों के लिए 50 रुपए एवं प्रति कार 50 रुपए का एंट्री टिकट लेना पड़ता है।
हम यहां टिकट लेने पहुंचे तो सिस्टम बराबर काम नहीं कर रहा था इसीलिए हमनें ऑनलाइन एंट्री टिकट मोबाइल से ही बनवा लिया। इसीलिए सफेद रण की विजिट करने की आपकी तारीख फ़िक्स है तो ऑनलाइन पास बनवा लेना सही रहेगा। इससे आपका समय भी बचेगा।
हम एंट्री पास बनवाकर सफेद रण में एंटर हो गए। यह रण बहुत ही सुन्दर है और बहुत ही बड़ा भी है, जिसका आधा भाग पाकिस्तान में भी है। यहां पर सनराइज और सनसेट बहुत ही खूबसूरत होता है, उसे देखने का आनंद कुछ अलग ही होता है। सफेद रण का असली नजारा तो फुल मून यानी कि चांदनी रात में ही अधिक होता है जब नमक से ढकी जमीन पर चांद की किरणे पड़ती हैं। इसीलिए हो सके तो यहां पर रात में ही आना पसंद करना चाहिए।
सफेद रण घूमने के बाद हम कालो डूंगर चले गए जो धोरडो से 55 किलोमीटर की दूरी पर है। कालो डूंगर कच्छ का सबसे ऊंचा पॉइंट है। अगर आप अच्छे ड्राइवर हो तो आप कार ऊपर तक ले जा सकते हो और वहां पर पार्किंग की भी सुविधा है। कालो डूंगर के टॉप से पूरे इलाका का बहुत ही सुन्दर पैनोरमिक दृश्य दिखाई देता है। यहां से पाकिस्तान की बॉर्डर भी दूरबीन की मदद से देख सकते हो।

कालो डूंगर विजिट करने के बाद सीधे हम रोड टू हेवन के रास्ते धोलावीरा पहुंच गए जो 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धोलावीरा 5000 साल पुरानी सिंधु घाटी की सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने खोद निकला है। यह साइट एवं आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम यहां देखने लायक है। इससे भी बढ़िया खावड़ा से धोलावीरा पहुंचने का जो रास्ता है वह बहुत ही खूबसूरत हैं। दोनों साईड पानी है और बीच में रास्ता निकलता है जो करीब 35 किलोमीटर लंबा है।
यह रास्ता रामेश्वरम में धनुषकोडी में जैसा है वैसा ही दिखता है। खासकर सनसेट या सनराइज के समय इस रास्ते में सफर करना आपके जीवन का एक बेहतरीन यादगार पल होगा। तो यहां पर आना मत भूलना। रॉड टू हेवन के दोनो साइड जो पानी है वह दरअसल एक झील है लेकिन इसका पानी बहुत ही खारा है। जब हमने इसके पानी से हाथ धुएं तो थोड़ी ही देर में हमारे हाथ सफेद सफेद नमक वाले हो गए। हम सनसेट पर यहां पहुंचे थे और नज़ारा बेहद ही खूबसूरत था।

धोलावीरा घूमकर वापस हम भुज आ गए और दूसरे दिन की नाइट यहां पर ही बिताई।
कच्छ टूर दिन 3 (Kutch day 3)
तीसरे दिन सुबह जल्दी उठकर हम माता नो मढ़ जाने के लिए निकल गए। माता नो मढ़ में आशापुरा मां का सुप्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर के पीछे भी एक इतिहास है। यहां पर मां आशापुरा की 6 फुट ऊंची मूर्ति है वह भी आधी यानी कि यह मूर्ति सिर्फ घुटनों तक ही है। माता नो मढ़ में आपको रात रुकने की भी सुविधा मिल जाएगी।

माता नो मढ़ में मां आशापुरा के दर्शन करने के बाद आप लखपत भी जा सकते हो। यहां का किल्ला लखपत फोर्ट घूमने लायक स्थल है जिसकी विजिट एकबार जरूर करें। लेकिन समय के अभाव में हम लखपत न जाते हुए डायरेक्ट नारायण सरोवर चले गए।

यह सरोवर पवित्र स्थानों में से एक है। यह बहुत ही खूबसूरत है। यहां पर मंदिर में दर्शन करने के बाद हम कोटेश्वर मंदिर के दर्शन करने चले गए जो नारायण सरोवर से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास रावण से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर से आपको सारे इलाके का बहुत ही खूबसूरत पैनोरमिक व्यू दिखाए देता है। मंदिर से समुद्र का व्यू भी अच्छा है और समुद्र के आगे पाकिस्तान है।

कोटेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन करने के बाद हम मांडवी आ गए जो यहां से 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं और यहां पर हमने नाइट स्टे किया।
कच्छ टूर दिन 4 (Kutch day 4)
चौथे दिन सुबह जल्दी उठकर हम सीधे मांडवी बीच घूमने चले गए। बीच सिटी के नाम से भी मांडवी प्रसिद्ध है इसीलिए गुजरात के स्वच्छ बीच में से एक मांडवी बीच पर घूमने तो जाना ही चाहिए।

हो सके तो आपका शाम का समय मांडवी बीच के लिए रिजर्व करके रखिए। मांडवी अपने खूबसूरत बीच के लिए सुप्रसिद्व है जो गुजरात के अच्छे और क्लीन बीच में शामिल हैं। दोपहर के बाद शाम के समय यहां का वातावरण बहुत प्यारा होता हैं। यहां पर आप 2 से 3 घंटे आराम से निकाल सकते हो और यहां पर आप वॉटर एक्टिविटी भी कर सकते हो।
बीच पर नहाने के बाद होटल पर फ्रेश होकर हम विजय विलास पैलेस देखने चले गए जो मांडवी से 8 किलोमीटर दूर है। विजय विलास पैलेस भारतीय आर्किटेक्ट का बेहतरीन नमूना है। उस समय राजा ने छुट्टियां मनाने के लिए यह महल बनाया था। इस इलाके में गर्मी बहुत होती हैं लेकिन इस महल में जाते ही इसके चारों कोनो में से कहा पर भी बैठेंगो तो मस्त ठंडी ठंडी हवा आती है जो आपको सुकून देंगी। कुछ इस प्रकार की महल की डिजाइन है। विजय विलास पैलेस में सलमान खान और ऐश्वर्या राय की फिल्म हम दिल दे चुके सनम की और अन्य मूवीज की भी शूटिंग हो चुकी हैं।

चौथे दिन कच्छ का टूर पूरा करके हमें घर के लिए वापस भी जाना था। लेकिन रास्ते में हमनें अंजार भी जाने का सोचा। अंजार में कुछ अच्छे घूमने लायक स्थल भी है। लेकिन हमें सिर्फ जैसल तोरल की समाधि के दर्शन करने जाना था। जैसल और तोरल गुजरात के इतिहास के भक्ति से भरे चरित्र है। इसका इतिहास आपको जरूर जानना चाहिए। दोनों की समाधि अंजार में हैं और सालों से दोनों समाधि के बीच का अंतर धीरे धीरे कम हो रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जब दोनों की समाधि के बीच का अंतर मिट जाएगा तब इस दुनिया में प्रलय होगा।

अंजार घूमने के बाद रात को हम सौराष्ट में अपने घर पहुंच गए और हमारी कच्छ की यात्रा सुखद और यादगार रही। क्या आप भी कभी कच्छ घूमने गए हों तो आपका अनुभव हमारे साथ जरूर शेयर कीजिए।